महज 24 साल की उम्र में ही अपना प्रोडक्शन स्टूडियो शुरू कर दिया , एक ज़िद्दी डायरेक्टर ,अभिनेता की कहानी

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महज 24 साल की उम्र में ही राज कपूर ने अपना प्रोडक्शन स्टूडियो ‘आर के फिल्म्स’ शुरू कर दिया था, उस समय वे फिल्म इंडस्ट्री के सबसे यंग डायरेक्टर थे। उनके प्रोडक्शन में बनी पहली फिल्म थी ‘आग’। इस फिल्म में राज कपूर एक्टर भी थे और डायरेक्टर भी। 

जिसके बाद आयी एक के बाद एक फ़िल्मों ने राजकपूर को सबसे कामयाब फ़िल्म मेकर बनाने के साथ-साथ एक ज़िद्दी डायरेक्टर भी बना दिया और इसी ज़िद का ही नतीज़ा थी साल 1970 के अंत में आयी अपने दौर की सबसे महँगी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’। अपने जीवन की इस सबसे ख़ास फ़िल्म पर उन्होंने साल 1964 में ही काम शुरू कर दिया था जिसे बनने में छह साल लगे थे।



यहाँ तक इसको बनाने के लिए उन्होंने अपने घर से लेकर आ.के स्टूडियो तक गिरवी रख दिया था। जब यह फ‍िल्‍म रिलीज़ हुई तो बुरी तरह फ्लाप रही थी और राज कपूर पर भारी कर्ज हो गया था जिसकी वज़ह से उन्हें अपनी पत्नी के गहने तक बेचने पड़े थे। 



इस फिल्म की नाकामयाबी की एक वज़ह इसकी लंबाई को भी माना जाता था जो राज कपूर की ज़िद ही थी। शुरुआत में तो इस फिल्म की लंबाई पांच घंटे से भी ज़्यादा थी जो काट-छांट करने के बाद 4 घंटे 15 मिनट पर आकर रुक गई। चूँकि राज कपूर की पिछली फिल्म संगम की लंबाई भी 3 घंटे 44 मिनट थी और वो बहुत बड़ी हिट साबित हुई थी तो राज को लगा कि लंबाई से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। फिल्म के राइटर के. ए. अब्बास और बाक़ी लोग चाहते थे कि फ़िल्म की लंबाई और कम हो लेकिन कहानी के साथ समझौता राजकपूर को पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने दो इंटरवल के साथ फ़िल्म को रिलीज़ कर दिया। बहरहाल मेरा नाम जोकर उस वक्त लोगों को पसंद भले नहीं आयी लेकिन बाद में टीवी राइट्स और फिल्म फैस्टिवल्स में इस फ़िल्म ने ज़बरदस्त कमाई की।


राजकपूर की ज़िद यहीं ख़त्म नहीं हुई उन्होंने एक और रिस्क लिया और अगली फ़िल्म अपने बेटे ऋषि कपूर और डिम्पल कपाड़िया जैसे एकदम नये चेहरों को लेकर टीन एज लव पर बेस्ड फिल्म ‘बॉबी’ बना डाली। यह सोचकर बनायी फ़िल्म की इसे तो हिट होना ही होगा ने कमाल कर दिया और फ़िल्म इतनी सुपर हिट हुई कि उसने राज कपूर की सारे कर्ज़ों को एक बार में ही ख़त्म कर दिया हालांकि इस फिल्म में राजकपूर की पहली पसंद राजेश खन्ना थे, लेकिन उनकी फीस इतनी ज्यादा थी कि राजकपूर उसे अफोर्ड नहीं कर सकते थे, और मेरा नाम जोकर के बाद फाइनेंसर भी राज कपूर पे पैसे लगाने से कतराने लगे थे। राज कपूर इसके बाद भी नहीं रुके उन्होंने अलग-अलग सब्जेक्ट्स पे फिर रिस्क लिये और सत्यम शिवम सुन्दरम, प्रेम रोग व राम तेरी गंगा मैली जैसी कलेट फिल्में बने डालीं। 


राज कपूर ने अपनी फ़िल्मों की क्वालिटी से तो कोई समझौता नहीं किया लेकिन फाइनेंसर के पैसे न डूबे इसके लिये उन्होंने अंग प्रदर्शन और बोल्डनेस का सहारा भी लिया। दरअसल राज कूपर ने ऐसे मुद्दों पर फिल्में बनाई हैं जिन्हें कोई भी डाइरेक्टर उस वक्त हाथ लगाने से भी डरते थे। 'मेरा नाम जोकर' में एक टीनएज बच्चे का अपनी टीचर से प्यार हो या प्रेम रोग मेंं एक विधवा के पुनर्विवाह या फिर एक औरत और गंगा नदी की पवित्रता को मिलाकर गढ़ी कहानी हर बार उन्होंने एक रिस्क लिया। फिल्मों में उस वक्त की गरीबी की चरम सीमा को दर्शाया है। राज कपूर की शुरुआती फ़िल्में 'श्री420', 'आवारा' और 'बूट पाॅलिस' भी कुछ ऐसी ही फ़िल्में थीं जिन्हें बनाने के बारे में उस दौर के बाकी निर्देशक सोच भी नहीं सकते थे।


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